परमेश्वर की बुलाहट

“प्रभु ने जिसको जैसा दिया है और जिसको जिस रूप में चुना है, उसे वैसे ही जीना चाहिये।” (1 कोरिन्थियों 7:17)

जितने भी लोग इस दुनिया में जीवित हैं, और आने वाली पीढ़ी में जीवित रहेंगे, उन सबके जीवन में परमेश्वर की विशिष्ट बुलाहट होती है जिससे व्यक्ति को जीने का उद्देश्य प्राप्त होता है। आप जो अभी यहाँ पढ़ रहे हैं, परमेश्वर की विशिष्ट बुलाहट आप के जीवन में भी है।

“प्रभु ने जिसको जैसा दिया है और जिसको जिस रूप में चुना है, उसे वैसे ही जीना चाहिये।” (1 कोरिन्थियों 7:17)

प्रश्न यह है: क्या आपने अपनी बुलाहट पहचाना है?

यदि हाँ, तो अगला प्रश्न है: क्या आपने परमेश्वर की विशिष्ट बुलाहट का प्रतिउत्तर दिया है ?
या आप क्या इसका प्रतिउत्तर दे रहे हैं?

यदि आपका उत्तर हाँ है, तो अगला प्रश्न है: आप परमेश्वर की बुलाहट के प्रति क्या रुख रख रहे हैं?

क्या आप परमेश्वर की बुलाहट को पहचानकर भी उससे भाग रहे हैं ठीक उसी प्रकार जैसे
नबी योना अपनी बुलाहट से विपरीत दिशा में भाग रहा था
और फिर मछली ने उसे अपने मुँह में निगल लिया था?

अथवा, क्या आप अपनी बुलाहट के प्रति निष्क्रीय है अपने
दिल को यह दिलासा देते हुए कि अभी तो जीने
के लिए बहुत वक्त बाकी है?

या……क्या अभी आपका दिल परमेश्वर के प्रति अग्नि-सा सुलग रहा है ?